यहाँ आपको मिलेंगी सिर्फ़ अपनों की तस्वीरें जिन्हें आप सँजोना चाहते हैं यादों में.... ऐसी पारिवारिक तस्वीरें जो आपको अपनों के और करीब लाएगी हमेशा...आप भी भेज सकते हैं आपके अपने बेटे/ बेटी /नाती/पोते के साथ आपकी तस्वीर मेरे मेल आई डी- archanachaoji@gmail.com पर साथ ही आपके ब्लॉग की लिंक ......बस शर्त ये है कि स्नेह झलकता हो तस्वीर में...
आज की तस्वीर में अपनी बिटिया रिधम के साथ है ब्लॉगर कुलवन्त हैप्पी .... और दूसरी फोटो में रिधम है मम्मी- और पापा के साथ
आज की तस्वीर में अपनी बिटिया रिधम के साथ है ब्लॉगर कुलवन्त हैप्पी .... और दूसरी फोटो में रिधम है मम्मी- और पापा के साथ
और एक राज की बात ये है कि रिधम का एक ब्लॉग भी है .....रिधम इन्दौर में रहती थी ,तब से पहचान है उससे ....
और ये कुलवन्त जी का ब्लॉग -कुलवन्त श्री
और ये कुलवन्त जी का ब्लॉग -कुलवन्त श्री
बाकि जो कुछ में उन्होंने कहा वो ये रहा ----
कुलवंत हैप्पी अपनी बेटी रिधम के साथ
आज जब मैंने खुद को भीड़ से थोड़ा सा अलग किया, तो 20 अक्टूबर 2013 की एक बात याद आ गर्इ। बात नहीं, एक वादा, जो निभाना भूल गया था। माननीय अर्चना चावजी से किया हुआ वादा। वादा बड़ा नहीं था, केवल अपनी बेटी रिधम के साथ एक फोटो भेजनी थी, जो अपना घर ब्लाॅग पर प्रकाशित किया जाना था। दरअसल, मैं समझ रहा कि मुझे एक लंबी चौड़ी पोस्ट लिखनी होगी, जिसमें मेरी चुलबुली बेटी की कोर्इ याद कोर्इ सम्मिलित हो। मगर, आज जब ब्लाॅग पर जाकर अन्य पोस्टों को देखा तो समझ आया कि केवल एक तस्वीर की जरूरत थी। हालांकि, मेरे एफबी पर मेरी, मेरी बेटी के साथ बहुत सारी तस्वीरें हैं। मगर, अर्चना चावजी को मेल के जरिये भेजने जिम्मेदारी मेरी थी, जो मुझे ही पूरी करनी थी।
चलो! आज वो दिन भी आ गया, जब मैं अर्चना चावजी को दिया हुआ अपना एक वादा पूरा करने जा रहा हूं, कुछ दिन पहले के एक संस्मरण को लिखते हुए। मेरी बेटी का पालन पोषण ननिहाल में हो रहा है, धार्मिक नानी की देख रेख में। मगर, शरारती की शरारतों से नानी भी उब चुकी है, उबेगी क्यों न पांच संतानों को पालने के बाद इस तूफान को संभालना मुश्किल जो है, उपर से ढलती उम्र।
मैं हर रविवार उसके ननिहाल जाता हूं। एक रविवार की दोपहर को मैंने उसको अधिक शरारत करने से रोका। कहा, ज्यादा शरारत करेगी तो मैं मारूंगा। एक नंबर की नौटंकीबाज ने इमोशनली ब्लैकमेल करते हुए कहा, ठीक है, मारो, मैं मर जाउंगी, भगवान के पास चली जाउंगी। मैं मौन, बेटी बागोबाग! गेम आेवर। अब क्या कहता। एेसा नहीं कि इस तरह इमोशनली ब्लैकमेल उसने पहली बार किया। हर बार तो इस तरह के हथियारों का इस्तेमाल करती है। कभी कभी तो समझदारी भरी बातें भी कर जाती है। 28 जून 2015 की बात ही है, जब मैं अपनी पत्नी के साथ मिलकर घर के सारे काम रहा था, गांधीनगर स्थित घर में, इस रविवार वो हमारे यहां थी, क्योंकि हम सैर सपाटा करके जो आए थे। दोपहर को हम थक कर सो गए। दोपहर बाद शाम को हिम्मतनगर, उसका ननिहाल, निकलने से पहले मेरे पास खड़ी थी। मैंने कहा, आज तुमने खेलने के लिए मुझे तंग नहीं किया, वो कुछ बोलती मैंने कहा, हां, तुम को पता था कि पापा काम कर रहे हैं। उसने जवाब देते हुए कहा, मैं आर्इ थी, आप से पूछा था, काम करवाउं, आप ने मना कर दिया। उसकी बात सुनकर सच में मेरा मन भर आया, किसी भी पिता का भर आएगा, बच्चे की समझदारी देखकर। सभी बच्चे एेसे ही होते हैं। चलो जाने दो। बस इतना ही, वरना अपने चांद को नजर लगवा बैठूंगा। टचवुड।
कुलवंत हैप्पी अपनी बेटी रिधम के साथ
आज जब मैंने खुद को भीड़ से थोड़ा सा अलग किया, तो 20 अक्टूबर 2013 की एक बात याद आ गर्इ। बात नहीं, एक वादा, जो निभाना भूल गया था। माननीय अर्चना चावजी से किया हुआ वादा। वादा बड़ा नहीं था, केवल अपनी बेटी रिधम के साथ एक फोटो भेजनी थी, जो अपना घर ब्लाॅग पर प्रकाशित किया जाना था। दरअसल, मैं समझ रहा कि मुझे एक लंबी चौड़ी पोस्ट लिखनी होगी, जिसमें मेरी चुलबुली बेटी की कोर्इ याद कोर्इ सम्मिलित हो। मगर, आज जब ब्लाॅग पर जाकर अन्य पोस्टों को देखा तो समझ आया कि केवल एक तस्वीर की जरूरत थी। हालांकि, मेरे एफबी पर मेरी, मेरी बेटी के साथ बहुत सारी तस्वीरें हैं। मगर, अर्चना चावजी को मेल के जरिये भेजने जिम्मेदारी मेरी थी, जो मुझे ही पूरी करनी थी।
चलो! आज वो दिन भी आ गया, जब मैं अर्चना चावजी को दिया हुआ अपना एक वादा पूरा करने जा रहा हूं, कुछ दिन पहले के एक संस्मरण को लिखते हुए। मेरी बेटी का पालन पोषण ननिहाल में हो रहा है, धार्मिक नानी की देख रेख में। मगर, शरारती की शरारतों से नानी भी उब चुकी है, उबेगी क्यों न पांच संतानों को पालने के बाद इस तूफान को संभालना मुश्किल जो है, उपर से ढलती उम्र।
मैं हर रविवार उसके ननिहाल जाता हूं। एक रविवार की दोपहर को मैंने उसको अधिक शरारत करने से रोका। कहा, ज्यादा शरारत करेगी तो मैं मारूंगा। एक नंबर की नौटंकीबाज ने इमोशनली ब्लैकमेल करते हुए कहा, ठीक है, मारो, मैं मर जाउंगी, भगवान के पास चली जाउंगी। मैं मौन, बेटी बागोबाग! गेम आेवर। अब क्या कहता। एेसा नहीं कि इस तरह इमोशनली ब्लैकमेल उसने पहली बार किया। हर बार तो इस तरह के हथियारों का इस्तेमाल करती है। कभी कभी तो समझदारी भरी बातें भी कर जाती है। 28 जून 2015 की बात ही है, जब मैं अपनी पत्नी के साथ मिलकर घर के सारे काम रहा था, गांधीनगर स्थित घर में, इस रविवार वो हमारे यहां थी, क्योंकि हम सैर सपाटा करके जो आए थे। दोपहर को हम थक कर सो गए। दोपहर बाद शाम को हिम्मतनगर, उसका ननिहाल, निकलने से पहले मेरे पास खड़ी थी। मैंने कहा, आज तुमने खेलने के लिए मुझे तंग नहीं किया, वो कुछ बोलती मैंने कहा, हां, तुम को पता था कि पापा काम कर रहे हैं। उसने जवाब देते हुए कहा, मैं आर्इ थी, आप से पूछा था, काम करवाउं, आप ने मना कर दिया। उसकी बात सुनकर सच में मेरा मन भर आया, किसी भी पिता का भर आएगा, बच्चे की समझदारी देखकर। सभी बच्चे एेसे ही होते हैं। चलो जाने दो। बस इतना ही, वरना अपने चांद को नजर लगवा बैठूंगा। टचवुड।